Bana Banaya Dekha Aakash, Bante Kahan Dikha Aakash - Hindi
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Regular price Rs. 200.00 Rs. 0.00   Unit price per

Age: 6+
Format: Paperback
Publisher: Ektara

Product Description:

बना बनाया देखा आकाश, बनते कहाँ दिखा आकाश....बने बनाए सूरज, चाँद... बच्चों से इस तरह विनोदजी सरीखा कोई बड़ा कवि ही बात कर सकता है। उनके समय के कैनवास को करोड़ों साल में फैलाया जा सकता है। वे सूरज से कह सकते हैं कि वह इतनी चुपचाप सुबह क्यों लाता है। वे हमें चींटी से, और शेरों से और सूरज, चाँद, पहाड़ और नदी से बात करने का सलीका देते हैं। वे पहाड़ से ऐसे बात करते हैं कि जैसे दो दस-बारह साल के दोस्त बात कर रहे हों। और इसी बातचीत से एक सुन्दर कविता ढलती है। कि पढ़ने वाले को लगातार लगता रहता है कि उसने ऐसा क्यों न सोचा...कि यह बात उसके ठीक पड़ोस में थी। फिर उसके हाथ उसे क्यों नहीं पकड़ सके।
ऐसी 49 कविताएँ इस गुच्छे में हैं। ये कविताएँ सूरज और मिट्टी और पहाड़ और नदी की कविताएँ हैं। तो ये कविताएँ किसके लिए हैं? ये कविताएँ उनके लिए हैं जिनके लिए सूरज और मिट्टी और पहाड़ और नदी हैं। ये कविताएँ उन सबके लिए हैं जो सपना देखते हैं, जो दुनिया में जादू और खेल से भरा जीवन देखते हैं। जो मुश्किलों की चप्पल फँसाए आशा के रास्ते चलते हैं। जो अपनी भाषा में बोलना चाहते हैं। अपनी कहन में। अपने स्वर में। चित्रकार तापोशी घोषाल के चित्र न पतंग हैं, न डोर हैं। न ही वे पतंग उड़ाने वाले हैं। वे उँगलियों के हलके-से खिंचाव की तरह हैं जिसमें पतंग का धागा पतंग को हलका-सा पीछे खींचता है। इससे धागा हवा मेें हलकासा तन जाता है। जाग जाता है। कि पतंग ज़्यादा उड़ान भर सके।